Health, Medicine and Treatment in early modern North India
Early Hindi medicine manuscripts in the Wellcome Collection
अथ उलू कल्प
उलू के पंष जालि भस्म कीजहि निंबू के रस सेती ले पुकी जहिं पूगे गौण कोस पंचास करै।१। अ
उलु कांजण। उलू का हीयाला उलू की आंषि लोहु सेती गोली बंधणी। गुरोचन सेती अंव्रती सेती आषि अंजणी
अदृष्ट भवति २। काभीगाइ कै मूति अंष धोवणी तौ सुद्ध होइ संग्राम जीतै । उलू के वावे पग की नली पारामेल-
णा जितना मावै सिर सिद्ध रषण संग्रम जीतै। ३ । काले मींटे के रक्त न्हव राई ए । भला होइ उलू के नेत्र सेती सर
सों केसरु नाग के ग्राह समिभाग सात दिन मसाण दबि राषिजै बलि देणी आदित वार काढि लेई ये पान संगि षाई ए
रत्री १ बसी करण होइ ।४। उलू के सब्ब नेत्र बिलाव के नष वाचू मुए कत्र करि पीसणे महातेलु मशाणि क-
जल पावण को परी माणस की अंजणी अदृष्ट भवति ।५। उलू के नेत्र केसरु गुरो चनु नाग केसर समेत तिल
कु कीजै बशी करणं भवति ।६। उलू कीजि काआसगंध बच चंदनु कुठ छड फूल प्रियुंग गुरोचन घोडी की
ल्लाल सेती गोली १ करि तिलकु कीजै रत्रे लोक बशी करौ ।७। उलू का सिरु काग का सिरु आदित्ता वार की रा
जालि भस्म करणी पीस सिर घालणी उचाट भवति मशाण न्हउ लाईए काले मीठेकै रक्त भला होइ ।८। उलू
की गर्दन विलाव के नष वाचर्मुध तूरे का रस निंबू की लकडी माण के हडु सत्रु के बारग दुणे कुल्लडै घल्लि आ
दिन्न बारि की राति दिवाना होइ ।९। काले मीठे के रक्त न्हउ लाई ए भला होइ । उलू के हर्छमछी कै तेल तल
णे निंबू १ संग को रेभाडै दबणे सत्रु कै कारि जल २ वाई पडइ । काले मींढे कै रक्त न्हउ लाइ ए भला होइ । १०
चम चिडी बडी आदित्त वारि पकडा वणी। नरमा बाडी की रूव सिंदूर केसरु गुरोचन चम चीडी के गल का
लोहु रूई उपर पावणी लोहु साथि गोली बांधणी स्त्री जो गुर गड छिटा देण स्त्री बस होइ ।११। मोहन विध
उलू सर्व्व जालण अधजाल्पा करि पीसणा गो के घीय सेती मर्द नु करण आंबि अंजणी रज मोहनु भवति
१२ उलू का पंष काग का पंष काले सर्प का सिरु आसा पुरी गुगल गोका घीउ साथी धूपदेणी हत्या भाइ मृ
गी जाइ चउ लेड जाइ ।१३। उलू की जंघ का हाडु परे वे की चुंचु वाबिद्धु कुगूगु रोचनु तिलक करणा बसी क
रणु होइ ।१४। उलू सारा जलावण अधझ ल्यापी सणा अमरी की पुट उ अजमोदा आसगंध नास दीजै
मृगी जाइ दारू मृगी की ।१५। उलू के पंष सात मंत्र णे आदित्त वार सत्रु कै बारि गड णे सूनु भवति
अथ मंत्र
ॐ नमो काल रात्री तृसूल हस्ती। महामहे श्वरी बाहिनी रइ कपाली ऋत शंकरी आगछ २
भवति अनल वल करी सर्व्व कर्मणी मिस्वै तुरु २ माहे श्वरी फुटु स्वाहा ।१६। उलू कफ पिठि घीय सेति अ
न सेती दीजै सत्रु नइ रिजि मरइ ।१७। उलू की हीकं काहु डुगुरोचन सत्तवा अभिमंत्रीयै अषि अंक्षणी
मोहनु होइ। अथ मंत्र ॐ नमो जषिणी अमु कामिणी मुझु पासि ले आउ ।१८। उलू की आंषि का पाणी
सर सों गुरोचन पाणी संगे प्पाव णाव सी करणु होइ ।१९। उलू की जीभ उप ट लेणी धतूरे के रस की पुट
देणी धूप देणी अउ चाटणा भवति ।२०। उलू की चुंचुत ले की मुह लठी हरताल कपूर कइ वाई के
सरु अध जाले वकरी के मूत सेती पीसणे अंषि अंजणी चउ थाई या जाइ दारू चौ धाई ए ताप की ।२१। उ
लू का बावां पगु आपणै दाहिणै बाजू बंधण संग्राम जीतै ताई न माहि घालि बंधण ।२२। उलू का जंघ काह
रु सू वर काह डमअण सके बाल सिर के पले टणे को रै भांडै दबणे सत्रु कै वारिसू नु भवति
राति चतुर्दशी १४ कुं पकडणा उलू के पेट माहि ताव चूर्ण मेलण जालि भस्म करण । अंषि अंजनी अश
२ कएं भवति ।२४। उलू की पग तली काटि लेणी पारा मेलणा टंकु १ रत्री षाणी पुस्त पुरी होइ ।२५। उलू
की कोली का हडु घसि तिलकु कीजै राज मोहन होइ ।२६। उलू के हड चूर्ण की जाइ पान संगि षाजै दिन २१
काया कल्प होइ ।२७। उलू की हीक कामा सु अंषि कापाणी रुई संगि अंवृती गुरोचन गोली बंधणी अंषि अं
अजणी अदृष्ट भवति ।२८। उलू की जीभ चणे प्रमाण तांबे केता ईत माहि घालणी मुष मद्धि रषणी राज मोहनु
होइ ।२९। रक्त पित्तीक्षई षांसि का औषद। सींधा सेर अध रुली १ अंगा रह माहि धरै जौ उस का मै लुज लिजाइ
तौ काटै ठंढा होइ तौ पीसै वासे के पात पीले छाव सु काइ चूर्ण करै पीपलि सेंध बराबर लेइ चूर्ण करै पात सम
भागें इकत्र करि टंकु १ तथा अधाले णावा सायां विद्य मानायां । आसायां जीवित स्यच रक्ति त्ती ज्वरी कासी
किम थमिं वसी दति ।१। औषध परमेव का सुहागा टं १ गुड टं १ गोली करि षाणी पाछै दूध गो काक चासे रुध ही
दिन ७ लेइ परमेव जाइ