Health, Medicine and Treatment in early modern North India

Early Hindi medicine manuscripts in the Wellcome Collection

Composed in 1592, Nainsukh's Vaidyamanotsava is the first medical treatise in early Hindi. Nainsukh was a Jain based in Punjab; as indicated by the project's map, Punjabi Jains writing in early Hindi constituted an important centre of acticity for early modern vernacular medical literature in North India, and Nainsukh appears to be the inaugurator of this activity.

The Wellcome Collection possesses eleven manuscript copies of the Vaidyamanotsava, the earliest, from 1688, is featured on this site's front page. This wealth of copies invites future attempts at a critical edition of the Vaidyamanotsava. The perhaps most striking variation that arises from a more elementary study of these manuscripts concerns the identity of Nainsukh himself. In an introductory verse, Nainsukh refers to his family background. In the 1688 manuscript, the verse appears as follows:


वैद्यमनोत्सव नाम धरि

देषि ग्रंथ सुप्रकासि

केसराज सुत नयनसुष

श्रावक कुल हि निवास


This glorious book I name

The Celebration of Physicians!

I am Nainsukh, son of Keśavrāj,

a member of the lay Jain community.

In the manuscript transcribed below, however, which dates from the 19th century, the verse is slightly, but significantly, different:


वैद्यमनोत्सव नाम धरि

देषि ग्रंथ सुप्रकास

केश्रवराज सुत नयनसुष

जा के धर्म निवास


This glorious book I name

The Celebration of Physicians!

I am Nainsukh, son of Keśavrāj,

a paragon of virtue.

Here, Nainsukh's father's status as a Jain layman, a śrāvak ,has been replaced with a less specific reference to 'dharma'. Other late manuscripts also replace the line with similarly non-specific phrases. While it is tempting to speculate on reasons behind such changes, it is at this point worth simply pointing out that to some of the Vaidyamanotsava's audiences, it was desirable to gloss over the fact that its author was a Jain.

In the Vaidyamanotsava, Nainsukh draws on Sanskritic medical literature, especially the Carakasaṃhitā, a foundational work in Ayurvedic medicine. However, Nainsukh is not only a translator or compiler of the most ancient material. His opening description of how to diagnose diseases based on measurements of the pulse is taken straight from Śārṅgadhara's Saṃhitā, an early 14th century work, that too a compilation of earlier material. While crediting the Carakasaṃhitā as his main source, Nainsukh clearly includes more recent material as well, and at times even introduces wholly new diseases and treatments within the schemes established by his Sanskritic predecessors. This manner of introducing novel concepts while claiming traditional heritage is not at all unique to Nainsukh, but is rather a very common practice in early modern North Indian literature in general.

There are further similarities with other literatures from the period. The overwhelming majority of early modern North Indian vernacular literature is versebound, and the Vaidyamanotsava is no different. Nainsukh alternates between all the most common metres of the period, especially the caupai-doha combination popularised by the epic poetry of Sufi romances.

The following is a complete transcription of the Wellcome Collection's Wellcome MS Hindi 114.

।। श्री राम जी ।। अथ नैनसुख ग्रंथ लिख्यतै ।। श्री हरि ।।


शिव सुत पै प्रणमो सदा रिद्धि सिद्धि नित देय

कुमति विनाशान सुमति कारि मंगल मुदित करेय

अलष अमूरति अलष गति किन हू न पायो पार

जोरि जुगल कर कवि कहै देह देव मति सार

वैद ग्रंथ सब मथन करि रच्यौ जु भाषा आंनि

अरथ दिषाउ प्रगट करि औषद रोग निदांन

मममति अलपज कहत हौ कबि मति परम अगाध

सुगम चिकिसा चतुर चित्त षिमहु सब अपराध

वैद्यमनोत्सव नाम धरि देषि ग्रंथ सुप्रकास

केशवराज सुत नयनसुष जा कै धर्म निवास

प्रथम नसा लछिन कहु देषि ग्रंथ मति सोय

पुनि आनो मन भाव ही जैसी मममति होय

अथ नाडी परिंक्षया


कर अंगुष्ट मूल ही देषहुं नसा अकार

जानहु सुष दुष जीव के पंडति करहु बिचार

आदि पित्त फुनि मध्य कफ अंत वाय परधान

त्रिविधिन साल क्षन कहुं जानहुं बैद्य सुजान

मैंड ककाग कुलंग गति पित्त नसा इह भाय

हंस मयूर कपोत कफ नाग जलौ का वाय

तीतर लवा बटेर गति सोध वनी सन्निपात

चलै क्षीण अरु सीत ह्वै नसा करै इह घात

क्षुधा चपल धमनी चलै उस्म रक्त की जांनि

ए शोध की फुनि कहुं आम गंभीर बषानि

चलै वेग अरु तप्त ह्वै जुर लछिन धमनीय

करहु चिकत्सा समझि कै ज्यौ सुष पावै जीव

अथ पित्त कफ वायु लछिन


विषमा सन जु षटा ईषार

क्षुधा त्रिषाले वहुत अहार

कट्ठ तक्त श्रम मदिरा पान

सेकै अग्नि क्रोध परवान

उल्ल जु खाय धूम मै गमैं

आधीराति दुपहरी समैं

कार्तिक ज्येष्ट आश्विन वैशाख

पित्त विकार प्रगट कहूं भाषि

मधुर ?ाध दधि तिल नव नीत

लौनष दाई पल झष सीत

भोजन तप्त और दिन सोवै

फागुन चैत समैं कफ होवै

वोलै तुंग वाद ब्रत गहै

चिंता देषि भयानक रहै

रूखा षाय कटुक निशा जगै

संध्यास मैं सीत तन लगै

भक्षन करै कसेला सोइ

किये प्रहार वायु अंग होय

इन हु देषि जु करहु विचार

वायुरोग जाय तत कार

मृग शिर पोष जु माह मै भादौ श्रावण तास

फुनि अषाढ पंदित कह्यौ वायुराज षट मास

अथ वायु पित्त कफ लछिन


मुख कटु ताव्या कुल परलाप

सूचै अधर खेत परताप

मूर्छा दाह सीत पर प्रीति

लछिन सुनौ पित्त के मीत

आलसषे हर षांसी सास

मुष मीठा जु भूष का नास

हीया भारि गल ग्रह रहै

कफ के लक्षन एते कहै

देही पीडा ताल जरै

आलस डोवा मन मैं रहै

देही शीतल निंद का नास

रुषा अंग वहुत हुय तास

भूष हीन मुष फीका रहै

उध्म प्रीत कायै जुर गहै

नयन सुष कवि कहो बषान

मारुत लछिन एते जानि

अथ पित्त कफ वायु उपचार


तीय संगम अरु बीज ना सीर सलिल अस्नान

भोजन मधुर सुगंधता करत कोप पित्त हांनि

ष्वारक से लतिक्त कडु तपतोदक उपवास

बमन विरेचन खेद फुनि होय इन्है कफ नास

तपतोदक व्रत उष्म द्रव मर्दन तेल सरीर

सुरापान से कै वदन िन ते जाय समीर

अथ साध्य लछन


होय त्रिषा जु सहीन कर पद नाभि जु तपत ही

मृदर सना परपीन शुभ लछिन ताकि कऊ

इंद्री अंग रहै चैतन्य सुष निंद्रा आवै जु सन्न

शुभ चित वन जु सुनै वच कहै स्वाद गंध कै गुण लहै

विन प्रखेद ज्वर जा कै होय स्वर स्वास ही न कफ होय

करहु चिकत्सा नाकु जान सो नर जीवै कहु वषानि

अथ असाध्य लछिन


जाय जु मारुत पित्त ग्रह पित्त जाय कफ गेह

कफ आवै जव कंष ही प्राण तजै तब देह

कंष विषै कफ होय निसादाह फुनि सीत तन

मरै जु रोगी सोय कछू तब नैं उपाय तिसु

गुदा भृष्ट अरु हीन स्वर कास स्वास फुनि जासु

व्याकुल हू चकी सोथ तन ताहि जम पुरी निवास

हुदै चरन कर नासि का नाभि होय हिम जासु

सीस तपत जिस कै रहै जम पुर ना कौ वास

दरपन शृत तेल मै छाया देषौ आनि

सीस रहत तन देषियै नास पछि मैं जानि

मंजन कीजै तीन अंग कर पद हीयै निहार

सू कहिता सुंतत काल जैसो मृत होय बिचार

कर बिचार दीपक बुझै आवे कछू न गंध

मति लजा झति नासद्धा य तास लेय जम फंद

अथ काल चक्र


आद्रा आदिज मृग अति मध्य मूल फुनि होय

नक्षत्र इंदुर बिनाम नर एक नसा जब होय

रोगी मृत्यु ज होय तब जाय जहां जम धांम

सो सिव कह्यौ विबारि कैं खाल चक्र धरि नाम

अथ श्री नैनसुष ग्रंथ प्रथमोध्याय।।अथ दश ज्वर लछिन


हुचकी विद ग्रह मूर्छा कास स्वास अति सार

बमन बिरेचन उदर दुख ज्वर लछिन दश कार

अथ पित्त ज्वर लछिन


मूर्छा त्रिषा प्रकाप फुनि सिरो वर्त्ति भ्रम चित्त

नेत्र दाघ कटुता वदन एलछिन ज्वर पित्त

अथ कफ ज्वर लछिन


कास स्वास रोमांच गुरु षेहर निंद्रा सीत

बमन अरुचि मुख मधुरता कफ ज्वर लछिन मीत

अथ वात ज्वर लछिन


सिर कंडू रोमांच भ्रम शीत कंप जंभाइ

मोह सिथल जु कषार मुष ए लछिन ज्वर वाय

अथ मुल ज्वर लछिन


दाह सोष पर लाप अस्थि पीडा सिर वर्त्ति भ्रम

ए लछिन मल ताप कही ज ग्रंथ बिचारि कैं

अथ नीर्ण ज्वर लछिन


वमन विरेचन उदर दुष वहु डका रहो य जास

लछिन रस ज्वर कहे देषि ग्रंथ सुप्रकास

अथ षेद ज्वर लछिन


निंद्रा जंभ न स्फुटि तन न होय अंग पर खेद

कह्यौ जु बैद्य बिचार कै ए लछिन ज्वर षेद

अथ दृष्टि ज्वर लछिन


जंभ न मुख आसक्तिता उद्र पीड फुटै अंग

ए लछिन ज्वर दृष्टि के कहौ जु ग्रंथ प्रसंग

अथ काल ज्वर लछिन


सीस तपत परखेद तनु कर पद सीतल होय

ए लछिन ज्वर काल केति सै उपाव न कोइ

अथ ज्वर परिपाक दिन


बात सात पित्त नव जाणि

कफ वार है दिन रहै प्रमाण

सपत दिवस गंध वाह दश बासर पित्त कहि

कफ हा दश दिन आह जो नो हु जुर पक इह

अथ मुक्त जुर लछिन


सिर कंडू पर खेद तनुरे ही लघुता जास

सुष पाकै वहु भूष छिक ए लछिन ज्वर नास

अथ लघु दर्शन चूर्ण


सौठि कटा लीप हो कर मूल

काक डासींगी कडूक चूर

मोह लेठी गिलोय आमला

साल्यौनी हलद पीपला

मिरच कलौजी त्राहि जु मान

पित्त पाप ए पत्र ज आंन

अगर धमा साहुडा मिलाय

लोचन वाला मूर्वा पाइ

तज पतीस देव द्वार हि जानि

मोथ पटोल अजवाय ए आंनि

चित्क अभया पीपरा मूल

ए ओषधि मे लौ सम तूल

चिरायता सव तैं भ्राधा आंनि

इन ओषदि कौ चूरन करौ

नाम सुदर्शन लघुता धरौ

चूरन पीजै जल माहि घालि

आठौ ज्वर नासै तत काल

दाग मोहंत त्रीद्वा नर हाय

पांडु रोग काम लाप राय

हीया गद त्रिषा सूल सब जांहि

संन्नि पात तेरै नर हाय

भ्रम जउ वाकी रोगन साय

सास कास की पीडअ जाय

गद अनेक नास हितु जांनि

हम ए किंचित कहे वषानि

अथ महाज्वरांकुस


सुंठि मिरच अरु पिपरै टांक आठ परवान

गंधक विष पारद कह्यौ दोय टांक ये श्रानि

वीज धतूरे टंक विव पीसौ ओषधि सोय

रस अद्रक सौ मर्दिये करि गोली रति दोय

गोली षाय ज प्रात उठि रस अद्रक का घालि

ताप पित्त कफ वाय कौ नास हये तत काल

तीजे दूजे नित्य कौ चौथै या ज्वर जाय

सुषिम विषम ज सीत ज्वर उदर व्‌याधि नर हाय

महाज्वरांकुसनाम कहि आत्रेय तै इह आनि

वैद्यमनोत्सव नाम कहि भाषा कह्यौ वषानि

अथ सिद्धिज्वरांकुस


शांख भस्म हरताल सम आंठ टांक लेह विचार

लीला थोथा दो पटांक तीन पुट देहक वार

औषधि संपुट माहि धरिता कौ गज पुट देह

प्रहर च्यारि पावक रहै सीतल भये ज लेह

एक रती परमान गहि षंड सौ दीजै जास

भात दूध सौ पथ्य दे होय सवै ज्वर नास

कह्यौ जु रांकुस चर्ष महि पंडित लेहु विचारि

नासै रोग अनेक विधि सिद्धि प्रगट संसार

अथ ज्वर घ्नी गोली


पीपलि मनसि लनींम फल रसक हेली पाय

गोली कीजै पीसि कै ता पत्ति दोष मिटाय

अथ पित्त ज्वर कौ चूरण


पित्त पाप ए आनि जल सौ पीजै पीसि कैं

टांक आठ परवान दाह पित्र ज्वर नार है

अथ पित्त दाघ ज्वर कौ चूरण


नेत्र बाला मोथा आंनि

चंदन पित्त पापरा ठांनि

सूंठि उसी खीर सौं लेहु

दाघ पित्त ज्वर नास करेहु

अथ कफ ज्वर कौ नास


सौठि मिरच अरु काय फल पीपल ताहि मिलाय

नास ज लीजै नीर सौ कफ ज्वर छिन महि जाय

अथ वात ज्वर कौ चूरण


सुंठि सौ चर पाय पीर मिरच कीरायता

कडु शिवा जुर लाय चूरण हरै जु वात ज्वार

अथ मल ज्वर आम कौ चूरण


ग्रंथक अरु कनि याल मोथा कडू हरी तकी

पीब हुक्काथ तत काल मल ज्वर कफ कौ नास ह्वय

अथ रस ज्वर कौ चूरन


अज मोदा जहरी तकी सौ चरता महि पाय

पीसि पीवौ जल तपत सौं रस ज्वर छिन मैं जाय

अथ षेद ज्वर को उपाय


मर्दन कीजै अंग कहु ते लति लौंका लाय

फुनि मंजन जल तपत सौ षेद ताप मिटि जाय

अथ दृष्टि ज्वर कौ चूर्न


पीपर मिरच चिरायता सूंठि हीं गसम घालि

चूरन षाइये टंक इक ताप दृष्टि कौं टालि

अथ दृष्टि वाय पित्त कफ ग्वर कौ चूरन


मोथा सौठि चिरायता पित्त पाप राजांनि

पीपर कडूगि लोय फुनि ए सम पीसो आनि

इह चूर्ण प्रसस्त अति जल सौ पीजै प्रात

अमल पित्त कफ दोष त्रय होय सबै ज्वर घात

अथ सीत ग्वर कौ चूरन


पीपल सौठि गिलोय फुनि गो मोता महि लाय

जल सौ पीजै टंक दोय सीत ताप नर हाय

अथ विषम ज्वर कौ चूरन


पीपरि शिवा जु आमरे चित्रक सींधा सोइ

चूरन पीजै नीर सौ नास विषम ज्वर होय

अथ सास कास विषम ज्वर कौ काटौ


कटाइ पो हौ कर मूल जांनि सम सौटिगिलोय आंनि

काठौ कीजै जल मिलाग्र कफ स्वास कास विषम ज्वर जाय

अथ तीजारी कौं धुनी


गुगल ऊलु पाष फुनि स्यांम वस्त्र मैं घालि

धुंनी दीजै प्रात उठि ज्वर चतुर्थ दे रेलि

अथ काम सास ज्वर कौ अव लेह/>


मघ पीपर पीसि कै मधु सौ चाटै आंनि

हिक्का कासर स्वास ज्वर होय स्तीह रोक की हांनि

अथ तत्ति पात चिकित्सा ।। आनंद भरौ रस ।।


सिंगरफ मिरचै पीपरै विषटं कन जस मान

अद्रक रस सौ गोली करौ रती एक परवान

आंनंद भैरौ रस कर्यौ सुंन पात ज्वर जाय

वात रोग सीतांग कफ मोह सूल जप राय

अथ चिंतामनि रस सन्निपात कौ


गंधक पारद पीपरै मिरचै जीरा दोइ

पंच लवण त्रय षार विष अभ्रक सुंठि जु सोइ

अद्रक रस अरु पांन को सव ओषद पुट देय

पर मित चनक प्रमान ही गोली सम जु बधेह

रस चिंतामणि यह कर्यौ करै नास सन्निपात

आम बबेसी सूल कफ होय विषम ज्वर घात

अथ कनक सुंदरी रस ।। सन्निपात कौ ।।


मिरचै पीपरि सौठि विष गंधक पारद जांनि

टांक टाँक ए लीजियै कनक मूल त्रय आंनि

मर्दन कीजै तीन दिन रसै जंभीरी पाय

गुंजा सम गोली करै प्रात उठै तव षाय

सन्नपात सीतांग कफ हिम ज्वर बेला जाय

मंद आनि उन माद फुनि ए ते रोग नसाय

अथ अठारा मूल कौ काढा सन्निपात कौ


धनिया मोथ चिराय ताक दु इंद्र जव आंनि

देवद्वार दश मूल सुंठि अगर गज पीपरि आंनि

क्वाथज करि कै पीजियै संन्नात ज्वर जाय

तं द्राहि क्वाबमी कफ कास सास जु मिटाय

अथ सन्निपात कौ अंजन


त्रिकुटा त्रि फला हिं गुवच सींघा कडु मिलाय

पीत जु सिर सौ सिर सफल ए ओषदि समभाय

अजामूंत सौ पीस करि करि अंजन नय नाय

अपस मार उन्माद भ्रम सन्नपात नर हाय

तिमरि रोग नासै अंधि फुनि भूत दोष सिर वरत्ति

कर्यौ ज बैद्य विचारि कैं ए ते करै निरवर्त्ति

अथ सन्निपात कौ काटौ


मोथा सूंठि चिरायता कडु गिलोय मिलाय

क्वाथ जइन कौ पीजियै सन्निपात ज्वर जाय

अथ सन्निपात कौ औषधि


कुं कमल वंग ज पीपरै अकर करा जु मिलाय

अद्रक रस सौ पीसि कै टंक ए कज बषाय

सन्निपात उन्माद कफ तंद्रा मारुत कास

सीत श्रू ल कफ मोह भ्रम इन कौ करै बिनास

अथ अतीसार चिकित्सा लीलावती गोली लष्यते


मीरच मतंगी दाडिम कली

बंस लोचन आंम गुली

लोद मुर हठी माइ धाय

माजू फल मोच रस पाय

कुटा जाय फल की कर फल

क्वाथ बिभाग और समतूल

ये सब ओषदि भाग ज चार

पीठावी जगि रीती न धारि

पीस तज लसौ गौली कीजै

टांक एक परवान धरि जै

तंदु लज लसौ पीजै आंनि

ताके गुण कोस कै वषानि

उद नम ठाप ध्य दे जास

अती सारस प्रहोय नास

अथ गंगाधर चूरण


मोथा अरलू सौठि ज धाय

बील पती समोचर सपाय

लोद लजालू आब के बीज

कुडा पाठ इंद्र जव लीज

लोचन बाला फुनि मधु पाय

तंदु लज लसौ पीवै मिलाय

मठा भात जव भोजन लेय

अतीसार छिन माहि थभेय

अथ लघु गंगाधर चूरण


सौठि धात की मोच रस अज मोदा ज मिलाय

पीसिछाछि सौ पीजियै अतीसार मिट जाय

अथ नागरादि काढौ अतिसार कौ


सुंठि कुडा जप तिस फुनि मोथ गिलोयमि लाय

क्वाथज करि कैं पीजियै अतीसार जु रजाय

अथ रक्तातीसार कौ


लोचन वाला कुडा पतीस

मोथा वेल ज समकरि पीस

थाकौ काढौ करौ मिलाय

सोणित अतीसार ज्वर जाय

अथ आम अतीसार कौ चूरण


लोद इंद्र जव मोच रस मोथा बेल ज धाय

षैयै गुड सौ गुटिका अतीसार थंभाय

अथ संग्रहनी चिकित्सा धना पंचक काढौ


धनिया मोथा सौठि फुनि वाला वील ज घालि

क्वाथज करि कैं पीजियै संग्रहनी कौ टालि

अथ संग्रहनी वाय शूल कौ चूरन


मोथा सौठि गिलोय पतीस

स्यत नीर सौ पीवै पीस

आम अरुचि संग्रहनी जाय

वाय शूल छिन मांहि मिटाय

अथ आम अरुचि संग्रहनी कौ काढौ


मोथ विपाठ लजालू मोथ चेल सूंठि पाय हो

धनीया पतीस गिलोय वालांकुडा धाय मिलाय हो

सम पीसि ओश्रदि क्वाथ कीजै प्रात उठि कै पीजियै

आंम शूल संग्रहणी अरचिता नास इन कौ कीजियै

इति श्री नैनसुष ग्रंथे द्वितीयोध्याय समाप्त

अथ ववेसी रोग चिकत्सा


एक मिरच विव सुंठि सुनि चित्रा आठ प्रमांन

सूरन सोडस भाग लै चुरन करहु सुजान

दुगणा लेय गुड पाय कै गोली करहु दंक दोय

पेट आफ रागु भाग दना सब बेसी होय

अथ चूरन बबेसी कौ


अरलू चित्ररक इंद्र जब सुंठि सींधा बेल

चूरन पीजै तक्र सौं रोग बबेसी रेल

अथ पुनी बबेसी


दुधी वडी ज आंनि घृत लौग सौं पीजियै

टांक सात परवान रक्त बबेसी नार है

अथ भगंदर कौ उपाव


अस्थ बिलाई आनि कैं त्रि फला रस संजोग

दोघ सिला वौ जानि कैं जाय भगंदर रोग

दंती हलद जु आंम रे पीसो नीर मिलाय

लेपज कीजै प्रात उठि रोग भगंदर जाय

अथ गुज्म सेगकौ उपाव


सौं चर हींग सींधा सूंठि अक लोन फुनि जांनि

अभया पीपरर अजमुदाज बषार विडंग समांनि

इन कौ चूरन कीजियै घृत सौ षाय मिलाय

गोला सूल विसूचिका अरस अजरि न जाय

अथ आम वात कौ उपाव


सर सौं सूठि जसू हिज ना वर्धा भुसुर दारु

कां जीसौ जव पीजियै सोजा बिथा निवार

अथ पीपलादि चूरण


पीपर पाढ कटाइ जान

सुंठि जीरा अभया आंनि

मोथा चिता पीपरा मूल

गज पीपरि मेलौ समतूल

तपत नीर सौ पीजे पीसि

आंमवात वेदन नहि दीस

शूल अभुष फहा नर हाय

षांसी धांसी छिन मैं जाय

आम वात कौ चूरन


सूषि विडंग हरीत की देवदारु ज मिलाय

तपत नीर सौ पीजियै आमबात नर हाय

दुतीय चूरन


दारु हरद ए रंड फुनि सिवा विडंग पतीस

मिरच इंद्र जव प्रांनि कैं लीजे समकरि पीस

तपत वारि सौ पीजियै आंमवात नर हाय

कृमि कीडा जु उदर माहिया षायै जु पराय

कृमिसेग कौ चूरन


त्रिफला त्रिकुटा वावची नीम तुचा अरु पाय

षदि ए कुडा षिडंग फुनि चुरण करौ मिलाय

धेनु मूत्र सौ पाय कैं टंक दोय परवान

सात द्यौ सज बपाय जै होय उदर क्रम हांनि

और उपाव


सौच रहो गज सौठि फुनि आन हु समकरि भाय

पीसि पीवौ जल तपत सौ सूलबि सूची जाय

हींगवादि चूरन


मिरचैं पीपरि सुंठि हींग सींधा जीरा दोय

अजमोद जल तपत सौं कव ही शूल न होय

अथ पोडु कामला वाथ रोग प्रतिकार कौ काटौ


त्रिफला कडु चिराय तावा सौभी बगि लोय

पीजै काढौ सहत सौं नांस पांडु गद होय

अथ अवलेह


त्रिकटा रजनी आबरे लोह चूरन मिलाय

चाटौ मधु घृत पाय कै पांडु कामला जाय

अथ कवल वाय कौ चूरना।। अवलेह।।


लोह चूरण त्रिफला कडु रजनी दोनु देय

कवल वाय सव ही हरै मधु घृत सौ जब देय

अथ काम लावाय कौ पोटली


फल बंदा लीसो पीसि कै करोह पोटली जोग

सुंघो हवांस की स्वास संगि जाय कामला रोग

अथ षैरोग प्रतिकार


असंगधि सुंठि जपी परै लौंगौं मिरचै पाय

जल सौ पीजै पीसि कै षैरोग नर हाय

षै कौ चूरन


त्रिफला सुंठि विडंग मिरचै कणा जु मोथ हिं

पीपरि मूल लवंग देवदारु तज लायची

पद्म पत्र राय सन्न गज के शारि जु मिलाय

सव तेडूनी मिसरी लेय षेरोग तन नार है

अथ हु चकी रोग प्रतिकार


वीठि माषी कीला षरस पीसिह दोनु पाय

नास जलीजै प्रात उठि हुच कीव हौ रन आय

अथ चूरन


मिरचै मिश्री लवंग फुनि गरी बेर की पाय

मधु सौ दीजै पीसि कै हुच की रोग पलाय

अथ छिरद रोग प्रतिकार


चंदन मोथा इलाइची लीजै कना लवंग

बेरगरी अर कवल फल गज के शरि सु प्रियंग

इन का चूरन कीजीयै मधुमिश्री मिलाय

प्रात समैं जब वाटियै छरद रोग मिट जाय

अथ सास कौ चूरन


सूंठि जपी परि काकरा सींगी

पहोकर मूल कचुर भाडंगी

मोथा मिरच जल तपत सौ लेय

महासास का नास करेय

सास को चुरन


कटाइ पहोकर मूल जाणि

बांसा सूंठि कुलत्था आंनि

ए पीसज पीजै तपत नीर

सास कास कीजाय पीर

अथ गोली।। दोहा ।।


सूंठि वहे ए पीपरी काकडा सींगी जांनि

भाडंगी सुकुवारि छाल्य ए समपीसि हु आंनि

गोल कीजै नीर सौं टांक एक सम सोय

निसा जु मुष मैं राषियै नास कास का होय

अथ गोली षांसी की


वांसा सूंठि जपी परै ए समपी सो आंनि

गोली कीजै सहत सौं होय षंध की हांनि

अथ मंदाग्नि प्रतिकार


पीपरि लोद हरी तकी सौंठि जसौ चर पाय

तपत नीर सौं पीजीये मंदग्नि जु मिटाय

अथ चूरन


सिंधासिवा जु पीपरै जामै चित्रक घालि

पीसि पीवौ जलत प्रसौ मंदनि कौं टालि

अथ छुधाकर गोली


त्रिफला त्रिकुटा लौंन हीग अर अजवायन मेलि

समगुड गोली कीजियै मंद अनि कौ रेलि

अथ विशूचिका प्रतिकार ।। सोरठा ।।


तेल तिलौं का आंनि कर पद मर्दन कीजियै

नांस विसूची जांनि सिधि जोग पंडित कर्यौ

अथ तेल बिसूचिका कौ


सिंधा कूठ चोष तिल तेल

तपत करै चूरन कौ मेलि

मर्दन जो कीजे लाय

बासी सूल विशूची जाय

अंडवृद्धि कौ चूरन


त्रिफला चूरन टंक एक धेनु मूत्र महि घालि

प्रात हि पीजै सात दिन अंड सोथ कौ टालि

सर पंषा जड कौं को लेह

टांक एक घीव सौं देय

मास येक जो सेया करै

अंड वृद्‌धि कौ निहचै हरै

अथ प्रमेह कौ चूरन


मोह मुंदी दाडिम कली स्वेत काथ सम खंड

दिन दस चूरन टंक इक करै प्रमेह विहंड

अथ चूरन ममेह कौ


संषा हेली इलायची सिला जीत फुनि लेय

सव परमेव काडुष हरै षाड सहत जो देय

अथ मत्र कृछ्र प्रतिकार


ए रंड वासा एलाची पीसौ तुल्य मिलाय

दधि सौ पीजै प्रात उठि मूत्र कृछ्रि मिटि जाय

मूत्र कृछ् कौ चूरन


सिता तुली जो षार धरि जल सौ पीजै आंनि

मूत्र कृछ्र सव दोष कौ नास होय तूं जानि

वीठ मूसे की जु सुनि तप्त नीर मै मेलि

नभि तलै जब ले पियै मूत्र रोग कौ रेलि

मूत्र रोध कौ चूरन


त्रिफला सिंधागो षरू विज कर्कटी पाय

तपत नीर शो पीजियै मूत्र रोध नर हाय

पाथरी प्रतिकार


अर नीवरना गोषरू सुंठि हरडै सम देय

असा भेद कनि पाल फल छालि सुहि जना सोय

काढौ सुया कौ पाइ जै लौ नहीं गज वषार

सग ए पाथरी जाइ है मूत्र कृछ्र नर हाय

अथ मृगी रोग कौ ओषध


वच षुरासानी सहत संग टंक दोय जब लोय

मृगी वात सव ही हरै दाध भात पथ लेय

मृग को नास


मिरचै सेहुंड माहि धरि दिवस इक इस परवान

जल सौ नास जली जियै हीय मृगी की हांनि

अथ व्राल्लाष्टत


व्राल्लीरस बच कू संगि संषा हूली देय

गोघृत मांहि संधि करि मृगी बावह रेय

अथ कुष्ट रोग प्रतिकार चूरन


त्रिफला वासानीं बणि लोय

षैरगि लोयन सम करि तोल

चूरन पीजै जल मैं घालि

कुष्ट रोग नासै तत काल

अथ कुष्टरोग कू चूरन


त्रिफलाम जीठ गिलोय कटुकी नीव निसा सुजान हो

वच दारु हलद बिडंग वासा देव दारु ज आंनि हो

समपीसि चूरन करो हू

विधि सौ पीजै पानी संग कुष्ट रोग सुप्रबल भाजि ही नास ही कंडू अंग

अथ मंजि थदिं काडौ खामरक कौ


संजिष्टा त्रिफला कडु रजनी नींव गिलोय

देव द्वार बच पीति कै काढौ कीजै सोय

प्रात उठि जब पीजियै बात रक्त नर हाय

अस्त कर्म डल पांम दांद कंडु कुष्ट मिटि जाय

अथ खेतकुष्ट कौ लेय


गुंजा नींव कूठ वच चीता

ए सम पीसौ मेरे मीता

ले पज कीजै कांजी आंनि

खेत कुष्ट नासै तु जांनि

षैर आंवरे समकरि लेहु

उठि जु सकालै क्वाथ करेहु

टांक दोय वावची पाय

खेत दाग मास मै जाय
अथ कंडु कौ चूरन
हलद वावचीनी मदल अर आमरे मिलाय

टंक दोय गोमूत सौ पीवत कंडू जाय

सिंडूर मिस्व समान करि महिषी घृत संजोग

मथि कै लेप ज कीजियै नांसै पाव को रोग

अथ लेप पाव दाद कौ व्यौची कौ


गंधक चोष विडंग फुनि कुठ जस गरफ जांनि

हरद पवाद सिंडु रसुनि पीसौ समकरि आंनि

कनक वीजतं वोल रस ले पै इनहै मिलाय

पाव दादा अरु व्यौची कुष्ट एते रोग नसाय

अथ पांव कौ लेप


डूब हरद सम पीसि कै लेपै जल संजोग

पांव दाद अरु षरस गद नांसै एते रोग

पाव दद कौ लेप


दुवनि गंद वावची ठांनि

सींधा सिवा पवा डज आंनि

लेप जकी जै कांजी घालि

दाद षर सना सै तत काल

पाव कौ लेप


गंधक हलद सो लेय लीला थोथा बाबची

साजी चुक सौ देय सब तैं डुगणा पवाड करि

कटुक तैल मैं पाय मर्दन कीजै तीन दिन

महिषी गोबर लाय नांसै पाव अनेक विधि

काली चिर मिह लद बिडंग

पौहौ कर मूल कूठ कै संग

सौठि निगद बाबची लेय

लौनक फोडा की जड देय

काल गडु मावुक के पात

काला जीरा करि है भात

गेरु मिरच पोह कर मूल

नील कंठी कोयल समतूल

ले पन गोमूत्र संग करै

लहर निनाइ की यह हरै

सर्व सौजा विस पाव पलाय

औषदि लूति कौ


चंदन कूठ सभालू पाय कवल सार वाये समभाइ

ले पन कीजै जल महि घालि लूत विथा छिन माहि जाय

अथ छीप रौग प्रतिकार

कद ली पत की भस्म करि ताम ही हलद मिलाय

ले पज कीजै नीर सौं छीप रोग नरहाय

लेप छीप को


घंधक चंदन आंनि नींबू रस सौं ले पियै

दिवस सात परवान छीप रोग तन नां रहै

अथ नारु रोग प्रतिकार


अर्द दधि करि पीस कौ दधि सौं पीजे सोइ

यह औषद पंदित कर्यौ नासना रुवा रोग

अथ वायु रोग प्रतिकार कौ गोंली


असगंध सूंठि तेल समजांनि

समतुल्य ज मेल हु षांड आंनि

इह औषदि लीजै घृत मिलाय

सो वात व्याधि छिन माहि जाय

चूरण वाय कौ


भाग सभालू भांगरा मुंडि ताहि मिलाय

चूरन कीजै टांक इक वात रोग नरहाय

अथ वाय कौ गोली।। चौपई ।।


पीपरि चित्रक अस गंधि जांनि

चबिक विडंग अजवायन आंनि

सूंठि कलौ जी पीपल मूल

अकर करा मेलौ समतूल

दूनैं गुड मैं गोली करहु

टांक दोय जु परवान ज धरहु

प्रात उठि कै गोली षाय

वाय चौरासी नाहि रहाय

वाय पीडा कौ रास्त्रादि


सुंठि ए रंड रासना देव द्वार सुगिलोय

काढा कीजै प्रात उठि पीडअ बायन होय

अथ लघु विसगर्भ तेल


मीठा तेल सेर इक आंनि

गुंजा धतूरा वीज मान टंक पांच पाच परवान

विधि जु तेल की कीजे आन

लघु विसगर्भ तेल यह जान

मर्दन कीजै देही लाय

वाय ज चौरासी नरहाय

अथ त्रयो दशां कग गुल


माल कांगनी रासना असगंध सौठि गिलोय

तीबी भंषड सौफ होय साठी सता वरि सोय

अजवाणि समपीसि कै समगुगल सौ पाय

अर्ध भाग गोघृत सौ गोली करौ मिलाय

तपत उदक मै दुध संग टांक दोय जब षाय

कटि टहरी घणी जो निडुच कुव जहनु ग्रह वाय

नाङा जानु पाद कोवा हापिष्टे हड सोय

मजा संधे षंज सुनि एते वाय न होय

अथ धृघ कौ लेप।। दोहरा।।


वेरी पल्लव आमरे तंडुल जल जु मिलाय

जल सौ लेपो चरन जु गदाघा विथा जु मिटाय
अथ छिर्हउ उवाकी कौ चूरन
पीसि छुवारा कामल फल अरु इलाइची घालि

सीत नीर सौ पीजियै छिद्र उवाकी टालि

कांस थांल मैं नीर सौ सोवार घृत धोय

लेप करौ फुनि चरन जुग दाघ विथा नही होय

अथ कफ कौ चूरन


लौंग भाडंगी पीपलै सौठि कटाई गाय

पीसि पिवौ जल तप्त सौ कफ षासी दुष जाय

अथ गंड माला प्रतिकार


पीपरि अर कचनारि कली त्रिफला समकरि आंनि

पीसि पीवौ जल तपत सौं नास हंजी राजांनि

सौठि भाडंगी पीसि कैं तंडुल जल सौं जोग

कंठ लगावै मांस एक हरै हंजीरा रोग

अथ नषरोग प्रतिकार


तवा षीर इलायची न्यो जे काथर लाय

मुष मै मेलौ पीसि कैं वदन पाक ह्वै जाय

मुष पाक कौ


त्र फला दाष गिलोय सत चैमेली दल पाय

दारु हलद अरु पाढ फुनि ए लीजै समभाय

काढा कीजै पीसि कै करि कुरला मधु घालि

वदन पाक अरु श्रग मना ए नासैं तत काल

ओषदि षुष कोल की


सर सौ सिंधा लोद बचए औषध सम सोय

जल सौ बदन जले पीयै कील रोग नहि होय

आथ छाया लेप


सींधा लोद जु कूठ हर दए ओषदि सम भाय

नींवु रस सौ लेपियै मुष की छाया जाय

अथ नासिका रोग प्रतिकार


दुबक सुंभ हरी तकी दाडिम फूल रलाय

सीत नीर सौ नास दे रक्त गमन सो जाय

नास पीनस कौ


मिरचै अरु बंदाल फल परमित तिल दोय

नास लेय नर नीर सौं पीन सरोग न होय

अथ नेत्र रोग प्रतिकार


रसवत लोद हरी तकी गेरू हलद मिलाय

जल सौ ऊपर लेपि यै नयन पीर मिटि जाय

अथ रराडा


सिंधा अरु कडु तेल मिलि कां सथाल महि पाय

करि रगडा अंजन करौ नेत्र पीड नर हाय

और रगरो


सुध फट करी रसवत सोइ

नारी यर सौं रगडा होय

कांस थाल महि रगडा करौ

नयन पीड तब ही सब हरौ

अंजन नेत्र कौ


कतक फल अरु जस्त फुनि मह दीरस संजोग

लोचन अंनज कीजियै रहे न कोइ रोग

सत्यौधा कौ अंजन


सुर मार जनी जुग्म कहि जाती रस सौ वंध

नयन हु अंजन कीजियै होय भला निस अंध

अथ पडबाल कौ अंजन


मिरचै गेरु लौण गुड ए तीनौ सम आंनि

जल सौ लेपौ पाडि कै षिय पडवाल हु जांनि

अथ कवल वाय कौ रगडी


मृत तावा अरु जस्त फुनि नीला थोथा आंनि

सीप चूना फट करी सागर फेन समांन

कांस थार महिर गडीये घृत गो काज मिलाय

निसा जु अंजन कीजियै कवल वाय नरहाय

अथ करण रोग प्रतिकार


आकति लल सण पत्रर रसकांन बीच सो पाय

वहरा पीडम और दुष एते रोग नसाय

दूतो उपाव


आकपात महिल सत धरि ताप हो दोनु सोय

कांन बीच जब मेलियै कर्ण श्रूल नहि होय

और कर्ण रोग का उपाय


देवद्वार बच सौठि सुनि सींधा सौ फर लाय

अजा मूत्र सौ तपत करि कांन विथा जु मिटाय

???? रोगप्रतिकार


देवदारु कुष्काय फल ए रंड तेल मिलाय

कांजी सौ जब लेपियै बात सिरो रुजाय

अथ ओधा सीसी सिरोवस्ति कौ लेप


पीपरि मिरच हरी तकी ए तीनौ समभाय

कांजी सौ जब लेपिये सिर की पीडा जाय

दूजो लेप


कूष पीपरि सारि वाब चुम हलेठी आंनि

कांजी सुं जब लेपियै प्राधा सीसी हांनि

घृत सौं सीधा पीसि कै नास लेय परभात

सिधि जोग नयनै कर्यौ आधा सीसी जात

आधा सीसी कौ गदा।।सोरठा।।


अजै पाल विस आंनि नीला थोला निर बसी

ले इह रबि सी जांनि घसि कैं बालिक मूत सौ

लै पै पछ ने लाय पीडा नासौ अंग की

अथ अस्त्री रोग प्रतिकार


गज के रारि तव स्रीर फुनि चंद न वाला पाय

तंडुल नल सौ पीजियै प्रदर रोग जु थंभाय

अथ प्रदर कौ औदि


गज के शरि तंडुल सिता दीजै नीर मिलाय

प्रदर रोग का नास हय मसुर भात जो षाय

अछे पीस हु आंमरे मिआं माहिर लाय

तंडुल जल सौ दीजियै प्रदर रोग नर हाय

अथ जौनि सुध की औषदि


सिरस कु पलै जायफल सागार फैन मिलाय

बाय बिडंग इलाइचइ गज के त्रारिसमभाय

जल सौ गोली कीजियै टांक एक परवांन

जल सौ पीजै सात दिन इह प्रोषदि हित जांन

बंध्या गर्भ जु होथ ध्रुव जौनि दोष जब जाइ

सालि मूग गोघृत यह फुनि ए पथ्य कराय

अथ गर्भ हौनै की ओषदि


धेनु दुग्ध सौ लक्ष्मणा करै पान सो नारि

मास ले डरित दिवस मैं होय गर्भ तत काल

मिरचै सौठि पीपरै ठांनि

गज के शारि जु कटाइ आंनि

गोगृत सौ जो पीवै नारि

ताकुं गर्भ रहै तत काल

गज के शारि असगंध सिता गो रोचन साल

पय सौ पीवै वंध्या गर्भ होय तत काल

गज के सरि सौ घी वसौ रित जु अंतकरि पान

दूध भात भोजन करै होय गर्भ तसु जांनि

असंगभेपा तरखा


धायल जालू कवल फल मुह लेठि अर पाय

तंदुल जल सौ पीजियै गर्भ जु पात थंभाय

अथ कथ अस्वी कौ उपाव


पाढि लौग जपी सिकै करौ गर्भ के माहि

प्रसूत होय तत काल ही उदार पीर सव जाय

कथ अस्त्री कौ लेप


पय सैं हुङका आंनि लेप करै नष नाभ

तिय कथ की हानि छिन माही होथ प्रसूत ही

दूजो उपाव


जड मुंडी की आंनि कटि बांधै कष्टी वधू

होय ज दुष की हांनि छिन मांही होय प्रसूते तिह

अथ गर्भ संकोचन प्रतिकार


पाहु कु सेला फिट करी मांई लोद कपूर

बेरझडी जु कभेर छलि माजू ता महि चूरि

मदन गेह बिच पाय कैं करै पुरष संजोग

जौनि अधिक संकोच ह्वय रहै न कोई रोग

पुनः संकोचन


मठा जु गोका आंनि रति दिन धोवै जोनि तिय

होय संकोचन जांनि सिद्धि जोग नयनै कर्यौ

संकोचनु टिका


किस्तूरी कर्पूर सम गोली कर मधु पाय

योनि वीच जब राषियै चीरी सीक नमाय

योनि दुर्गधिक को ओषदि


नीव पात कौ क्वाथ करि धोवै योनि सो तीय

अति दुर्गंधका नास हुय आंनंद हुय बहु पीय

अथ ओषदि थतेला कौ


हलद कूमारी तपत करि कुच उपरि सुधरेह

थण हे लाका नास ह्वय सिध जोग जानेय

अथ वाल सेग प्रतिकार


काकडा सींगी कना पतीस

वालक चाटौ मधु सो पीसि

ताप कास अछिरद्र्न साय अथ वास हत पतीस जो षाय

अथ वालक के अतीसार कौ कोढा


वाला लोद मिलाय वेल धात की गज कना

मधु सौं काढा चराय अति सार ससि के हरै

अथ वालि कछीगुदा पाकै जाकौ उपाव


रसवत गुदा ज लाव अरु षाणे कुंदेय

पाकी गुदा जु भली ह्वय सिद्धि जोग जाणे हु

अथ दारघ कठिन सूल होनै की औषदि


विजीया अर्क कर्न रजर रसै धतू रापाय

गोली कीजै पीसै लीजै छांह सुकाय

आत्म मूत्र सौं पीसि कैं करौ लेप इंद्रीय

दीर्घ कठीन जु स्थूल ह्वय देषत भाजै तीय

अथ लिंग स्थूल प्रतिकार


वच कुठ गज पीपरी असगंध बला सु दोय

तुरंग स्त्रन वनीत सौं लींग मूसल सम होय

अथ लेप वृद्धि स्थूल कौ


असगंध पारद मंजणि कणि जड सित मिलाय

लेपन कीजै लिंग पै वृद्धि स्थूल कराय

अथ थंभन


अजा सैहडकअ दुध फुनि लजालू जल पाय

कर पद नाभि जुले पियै थंभ न होय अधिकाय

आछी अफीम ज आंनि कैं करौ वर्त्ति का जोग

लिंग छिद्र महि राषियै वौ हौत करौ नर भोग

अथ भदन प्रक वरित


ताल षाण मूसली सौठि गोष रुपाय

कौंच बीज असांध फुनि सीवल मूल रलाय

वलासता वरि मोच रस फुनि जु ल्हसाडे जांनि

सिता दुध सौ पीजियै वहु तियर मैं निदान


कुंकम सिंगर फजाय फल रालम षानें पाय

कौंच चीज तज जल की थकर करा जु मिलाय

तुंगार लौंग तमाल दल अज दानि षुरासज

जान लाग सम लीजियै चौथै भाग अभ्रक जानि

चोषा तामे सर और रलाय

परमित टंक जए करै निस मैं भछिन करै

लल नार मैं अनेक सिद्धि जोग पंडित कर्यौ


नाद्री सी बल कीज डले इस्याम मूत्रा लीता सम देय

कौंच चीज तज जल की थकर करा जु मिलाय

धात पुष्प लहोय अधिकाय

अथ


चंदन रजनी मोथ कचूर लोद अगर पद माष कपूर

छडम रुवा गज के सरि पाय

गाडर जर आमरे मिलाय देही मर्दन कीजै जास

होय दुर्गंध का यौ अव नास

पित्त दोष नासै तू जांनि

चर्ष ग्रंथ ते कर्यौ बषांनि

अथ ध कौ प्रतिकार


मोथ वील हरी तकी बींबी फल अरु पाय

लेप करौ नर नीर सौं बगल गंधि गिटि जाय

अथ ता मुधकी कौ उपाव


वेल कनीरा एलची जाव त्री तज लैइ

गज के शारि अरु जायफल ए औषद समदेय

गोली कर हु मषी रसौ सयन समैं मुष घालि

आन न की दुर्गंध ता नास होय तत्कांल

अथ दुर्गंदि


गज के सरि पान्ही जड पाइ सिरस पत्र अरु लोद

मिलाय जल सौ मर्दन कीजै गात

अथ फिरास की ओषधि


आंनि कोडा कीजडै करि समीप दधि तास

पाय सीस मंजन करौ होय फरास कों नास

सिर धिता कौ नास


चंदन मोथा चंपावती बली राज कपूर

जल सौं मेलो सीस पर होय दुर्गधि ता दूरि

परि मिति गंधि समद्रसम मममति षोजत पार

उषध रहे सुजता गहै कीये प्रगट संसार

वैद्य मनोत्सव ग्रंथ महि कर्यौ सकल निज आंनि

दुष कंदन फुनि सुष करन आनंद परम निदांन

केशावराज सुत नैंनसुष कर्यौ ग्रंथ अमीकंद

शुभ गस है रसी नंद मैं अकबर साहि नरिंद

इति श्री पंदित केशवदास पुत्र नयनसुष विरंचिते बैद्यमनोत्सव रोग निदान चिकत्सा संपूर्णम